सुकून मिलता है-
बेशुमार फूलों के गले लगकर,
रंगों से लिपटकर,
इन्द्रधनु की चुनरी पहनकर,
सुकून मिलता है.......
अब याद नहीं आता,कि-
मैं चाँद के गाँव कब गई थी!
कोई रेशमी डोर थामकर शायद तुम्हीं आ गए थे,
देखा ,
तो विस्मित आँखें खुली रह गई थीं,
सोचकर सुकून मिलता है..................
मेरे सपनों के सोनताल में ,
कोई नन्हा कमल आज भी खिलता है!
उस दिन-
भोर की स्निग्ध किरणों का नाच-गान जारी था,
चतुर्दिक भैरवी की तान गूंज रही थी,
मैंने सुना,
"अम्मा मैं आ गया"
आवाज़ सुनकर मुझमें हरकत आई थी,
चेतना जगी थी....
पलकें खोल तुम्हारी ओर देखा था,
सोचकर सुकून मिलता है........................
सहसा मुझे ये पंक्तियाँ याद आयीं ,
नैनन की करी कोठरी ,
पुतली पलंग बिछाए,
पलकन की चिक डार के,
पिय को लिया रिझाए।'
चेहरे में मेरे आराध्य की छवि थी,
हर्षातिरेक से रोमांचित मेरा 'मैं' ,
तुम्हारे चरणों पर झुका -
या, माँ की ममता ने
फूल से दो नन्हे पाँव चूम लिए............
मेरे पुण्यों का फल सामने था,
सोचकर सुकून मिलता है..........................
8 comments:
या, माँ की ममता ने
फूल से दो नन्हे पाँव चूम लिए............
मेरे पुण्यों का फल सामने था,
सोचकर सुकून मिलता है..........................
avismariny bahut hee achha hai
Anil
sakun milta hai, aapke hatho ki rachna dekh kar aur padh kar.......bas itna hi kah sakta hoon...........
मेरे पुण्यों का फल सामने था,
सोचकर सुकून मिलता है...........
और यही सकून दिल को एक तस्सली दे जाता है बेहद खुबसूरत लगी आपकी यह रचना
aapki soch me hum bhi wahi kho gaye..
aake sapno ko dekh, to hum bhi wahi so gaye,
aap se hume milti hai prerna, aur junoon milta hai..
aapki mamta ki chhaon me,
sach me sukoon milta hai..
GOPAL
मैं क्या कहूँ ??
हर शब्द ;
हर भाव ;
छोटे से छोटा अलंकरण भी
तुक्ष बता रहा है ;'
मेरी बौद्धिकता को.
सरस्वती जब ही स्वयं संगीत रच दे ;
सरस्वती जब स्वयं शब्दों को सहारा दे ;
तो कथ्य क्यों नहीं महान बने;शब्द क्यों नहीं गौरवान्वित हों;
इतनी करुना ,इतना प्यार,इतना वात्सल्य...के बदले में मैं
आपको अपनी भर आयी आँखों से ढेर सारा प्यार और सम्मान ही
दे सकता हूँ...
सादर नमन ...
...देश.
Sabdo ki ye jadugari prashansniye hai.
apaar kasht seh ke bhee....apne ansh ki ek jhalak aur swayam ke naye jivan ko dekh ek maan ki manodasha ka avismarniy aur prashansniy chitran ammaa!.....Lajawaab!
...Charansparsh!
....Ehsaas!
माँ के मनोभावों को इससे बेहतर शब्दों में शायद पिरोया जाना संभव नहीं था...
बेहतरीन कविता...बधाई.....
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देखा माँ के मनोभावों को...
एक कोमल अहसास जगा है..
माँ के चरणों में नतमस्तक..
होने का दिल आज हुआ है...
अपने कष्टों को न देखा...
जिसने जन्म दिया है हमको...
उसके दम से ही दम अपना...
जीना है सिखलाया हमको...
क्या कोई उसको दे सकता...
जिसने जन्म दिया हो उसको...
श्रद्धा, मान और आदर देकर..
गले लगायें अपनी माँ को....
कितनी रातें जाग के उनने..
हमको रोज सुलाया होगा...
कितने जतन से उसने हमको...
रोते हुए हंसाया होगा...
कितने ही पग उसने हमको..
ऊँगली पकड़ चलाया होगा..
कितनी ही रातों को उनने...
लोरी गा के सुलाया होगा ...
मेरी मुस्कानों पे वारी...
आज भी होती हैं मेरी माँ
मेरी ठेस पे सबसे पहले...
आज भी रोती हैं मेरी माँ...
मेरा इक इक रोम है माँ का...
इक इक सांस उन्हीं की है....
जिसने जनम दिया है मुझको...
दुनिया आज उन्हीं से है....
मेरे संग ही रहता ईश्वर....
माँ के रूप में मेरे घर....
हर दिन आशीर्वाद है मिलता ....
आँचल छा कर माथे पर......
अगला जन्म अगर मेरा हो....
मैं माँ अपनी ही पाऊं....
जन्म जन्म तक मैं माँ के ही....
आँचल का साया पाऊं....
जन्म जन्म तक मैं माँ के ही....
आँचल का साया पाऊं.....
दीपक शुक्ला
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