मेरी दुनिया...

Wednesday, August 27, 2008

मेरा मन - एक परिचय !


मेरा मन, एक पुस्तक है ,
जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर -
तुम्हीं रेखांकित हो
अक्षर-अक्षर में -
तुम्हारी ही छवि बोलती है !
तुम्ही छंद हो, तुम्ही लय हो
यह पुस्तक, तुम्हारा समन्वय है !
शरीर तो एक आवरण है
जिसे प्यार और करुणा के रंग से
सँवारने का अथक प्रयास करती हूँ ......
ताकि कभी तुम स्वतः
पुस्तक खोलने पर बाध्य हो जाओ !
फिर.............
उम्मीद है, तुम्हारी आंखों की नमी
स्वाति के बूंद-सी
- मेरे माथे पर टपकेगी !

Saturday, August 23, 2008

बादलों वाली लड़की....


आपने भी देखा होगा -

मक्खन की डली -सी उस लड़की को

जो बादलों के बीच दौड़ती है

खरगोशों के झुंड से खिलवाड़ करती है

स्याह मखमली भालुओं के बीच विचरण करती है

लुकाछिपी का खेल खेलती है

फिर अचानक पलक झपकते ही -

शिखर पर पहुँच जाती है

और कभी आंखों से कभी हाथ से

इशारा करती है -

'आकाश के आँगन में आओ

हमारी दुनिया को जानो

हमारे साथ खेलो -

निःशंक, निर्द्वंद !'

इस निश्छल अनुरोध को मानकर

हमें भी उसे निमंत्रण भेजना चाहिए

'तुम धरती पर आकर हमारी दुनिया देखो और जानो '

शायद इस मेल-जोल से

धरती - आकाश का काल्पनिक मिलन

साकार हो जाए

आनेवाले कल को कोई नया सृजन हो !

पर क्या हम इस बात का दावा कर सकते हैं

की बादलों वाली मासूम लड़की

- इंसानी रंगत वाली धरती पर

उसी प्रकार दौडेगी,खेलेगी

जैसे आकाश के आँगन में होती है

- निःशंक, निर्द्वंद !?

Wednesday, August 20, 2008

कुछ साज-तुम्हारे लिए......

(१)
डूबते चाँद का पता पूछो
एक मुसाफिर यहीं पे सोया है
नभ की खिड़की से सर टिका करके
जाने कौन सारी रात रोया है!

(2 )
तेरा ख्याल मेरे साथ लगकर सोया है
थपकियाँ देकर कहानी सुनाई है
लोरी गाकर चादर उढ़ाया है
पलकों और गालों को आँचल से पोंछा है
होठों पर संजीवनी रख दी है
शायद थोडी देर पहले यह रोया है
तेरा ख्याल साथ लगकर सोया है.....

(३)
जा रहा किस ओर तू
कुछ बोल पंछी
किस पिपासा को लिए ओ बावरा
दर्द जब इंसान हर पता नहीं
क्या हरेंगे फिर ये चंचल धवल बादल?

(४)
आओ आज की रात
हम दरवाजों को खुला छोड़ दें
खिड़कियों को बंद मत करें
हमारी अधीरता वह भांप ले
और लौट आए.............

Saturday, August 9, 2008

नन्हे पैरों के नाम.......


( १ )

हम हैं मोर,हम हैं मोर

कूदेंगे , इतरायेंगे -

पंखों का साज बजायेंगे,

आपका मन बहलाएँगे ।

हम है मोर,हम हैं मोर

नभ में बादल छाएंगे,

हम छम-छम नाच दिखायेंगे

आपको नाच सिखायेंगे ।

हम हैं गीत,हम हैं गीत

दरिया के पानी का

मौसम की रवानी का

आपको गाना सिखायेंगे ।

हम हैं धूप,हम हैं छांव

आगे बढ़ते जायेंगे

कभी नहीं घबराएंगे

आपको जीना सिखायेंगे ।


( २ )

मैं हूँ एक परी

और मेरा प्यारा नाम है गुल

गर चाहूँ तो तुंरत बना दूँ

शूल को भी मैं फूल !

चाहूँ तो पल में बिखेर दूँ

हीरे,मोती ,सोना

पर इनको संजोने में तुम

अपना समय न खोना !

अपना ' स्व ' सबकुछ होता है

' स्व' की रक्षा करना

प्यार ही जीवन-मूलमंत्र है

प्यार सभी को करना !


( ३ )

मैं हूँ रंग-बिरंगी तितली

सुनिए आप कहानी,

मैं हूँ सुंदर,मैं हूँ कोमल

मैं हूँ बड़ी सयानी

इधर-उधर मैं उड़ती - फिरती ,

करती हूँ मनमानी ! मैं हूँ.................

फूलों का रस पीती हूँ

मस्ती में मैं जीती हूँ

रस पीकर उड़ जाती हूँ

हाथ नहीं मैं आती हूँ !

मैं हूँ रंग-बिरंगी तितली........


( ४ )

बिल्ली मौसी,बिल्ली मौसी

कहो कहाँ से आती हो

घर-घर जाकर चुपके-चुपके

कितना माल उडाती हो ।

नहीं सोचना तुम्हे देखकर

मैं तुमसे डर जाती हूँ

म्याऊं- म्याऊं सुनकर तेरी

अन्दर से घबराती हूँ !

चाह यही है मेरी मौसी

जल्दी तुमसे कर लूँ मेल

फिर हमदोनों भाग-दौड़ कर

लुकाछिपी का करेंगे खेल !

Monday, August 4, 2008

डर कैसा ?


जी चाहता है -

रेशमी सपनों के पंख पैरों में बाँध लूँ

और उड़ जाऊँ

निस्सीम आकाश का विस्तार मापने

पर अगले ही क्षण डर लगता है !

आँधियों का क्या भरोसा ?

समय का एक हल्का इंगित होते ही

नभ का कोना - कोना

धूल - गर्द गुबार से ढँक जाएगा

मेरे सारे मनसूबे दिशाहीन हो जायेंगे !

पर तेरे चरण चिन्ह , मेरे हौसले को बल देते हैं

पूरे ब्रह्माण्ड में तू विद्यमान है

साथ-साथ चलता है , प्यार करता है

तो फिर , डर कैसा ?

Friday, August 1, 2008

ज़माना बदल गया ..........



अब कोई नहीं कहता-
मैं वाणभट्ट होता तो 'कादम्बरी' लिखता
जयदेव होता तो 'गीत गोविन्द' लिखता
जायसी होता तो 'पद्मावत' लिखता....
काश ! कभी तू भूले से ही सही,
मेरे आँगन आ जाती
मैं हरसिंगार के फूल बनकर
तुम्हारा आँचल फूलों से भर देता !
कभी तुम कहती- तुम्हे कौन सा रंग पसंद है
मैं उसी रंग के फूलों का बाग़ लगा देता
उसके बीच खड़ी होकर तुम वनदेवी सी दिखती !
मैं क़यामत के दिन तक.............................................
जैसे शब्दों की गूंज ख़त्म हो गई
इसलिए लगता है, ज़माना बदल गया !