मेरी दुनिया...

Saturday, June 21, 2008

सुकून........


सुकून मिलता है-

बेशुमार फूलों के गले लगकर,

रंगों से लिपटकर,

इन्द्रधनु की चुनरी पहनकर,

सुकून मिलता है.......

अब याद नहीं आता,कि-

मैं चाँद के गाँव कब गई थी!

कोई रेशमी डोर थामकर शायद तुम्हीं आ गए थे,

देखा ,

तो विस्मित आँखें खुली रह गई थीं,

सोचकर सुकून मिलता है..................

मेरे सपनों के सोनताल में ,

कोई नन्हा कमल आज भी खिलता है!

उस दिन-

भोर की स्निग्ध किरणों का नाच-गान जारी था,

चतुर्दिक भैरवी की तान गूंज रही थी,
मैंने सुना,

"अम्मा मैं आ गया"

आवाज़ सुनकर मुझमें हरकत आई थी,

चेतना जगी थी....

पलकें खोल तुम्हारी ओर देखा था,

सोचकर सुकून मिलता है........................

सहसा मुझे ये पंक्तियाँ याद आयीं ,

नैनन की करी कोठरी ,

पुतली पलंग बिछाए,

पलकन की चिक डार के,

पिय को लिया रिझाए।'

चेहरे में मेरे आराध्य की छवि थी,

हर्षातिरेक से रोमांचित मेरा 'मैं' ,

तुम्हारे चरणों पर झुका -

या, माँ की ममता ने

फूल से दो नन्हे पाँव चूम लिए............

मेरे पुण्यों का फल सामने था,

सोचकर सुकून मिलता है..........................