जी चाहता है -
रेशमी सपनों के पंख पैरों में बाँध लूँ
और उड़ जाऊँ
निस्सीम आकाश का विस्तार मापने
पर अगले ही क्षण डर लगता है !
आँधियों का क्या भरोसा ?
समय का एक हल्का इंगित होते ही
नभ का कोना - कोना
धूल - गर्द गुबार से ढँक जाएगा
मेरे सारे मनसूबे दिशाहीन हो जायेंगे !
पर तेरे चरण चिन्ह , मेरे हौसले को बल देते हैं
पूरे ब्रह्माण्ड में तू विद्यमान है
साथ-साथ चलता है , प्यार करता है
तो फिर , डर कैसा ?