मेरी दुनिया...

Friday, August 1, 2008

ज़माना बदल गया ..........



अब कोई नहीं कहता-
मैं वाणभट्ट होता तो 'कादम्बरी' लिखता
जयदेव होता तो 'गीत गोविन्द' लिखता
जायसी होता तो 'पद्मावत' लिखता....
काश ! कभी तू भूले से ही सही,
मेरे आँगन आ जाती
मैं हरसिंगार के फूल बनकर
तुम्हारा आँचल फूलों से भर देता !
कभी तुम कहती- तुम्हे कौन सा रंग पसंद है
मैं उसी रंग के फूलों का बाग़ लगा देता
उसके बीच खड़ी होकर तुम वनदेवी सी दिखती !
मैं क़यामत के दिन तक.............................................
जैसे शब्दों की गूंज ख़त्म हो गई
इसलिए लगता है, ज़माना बदल गया !