पोर-पोर में थकान लिए,
शरीर और मन दोनों से हार कर
तुम्हारी देहरी पर बैठी हूँ
प्रकोष्ठ का द्वार खोलो.....
तमस में घिरी हूँ,कुछ दिखाई नहीं पड़ता
कहाँ जाऊं, किधर जाऊं के उलझन में घिरी हूँ
प्रभु कृपा करो
अपने प्रभामंडल का आलोक प्रसारित करो
प्रकोष्ठ ................
मेरे विनम्र निवेदन की अर्जी को
किसी पत्थर जड़ी मंजुषा में मत डालो
शरीर और मन दोनों से हार कर
तुम्हारी देहरी पर बैठी हूँ
प्रकोष्ठ का द्वार खोलो.....
तमस में घिरी हूँ,कुछ दिखाई नहीं पड़ता
कहाँ जाऊं, किधर जाऊं के उलझन में घिरी हूँ
प्रभु कृपा करो
अपने प्रभामंडल का आलोक प्रसारित करो
प्रकोष्ठ ................
मेरे विनम्र निवेदन की अर्जी को
किसी पत्थर जड़ी मंजुषा में मत डालो
पढने की बारी आने तक
मैं देहरी पर बैठे-बैठे दम तोड़ दूंगी
मुझे तुम्हारी समीपता चाहिए
मेरा आग्रह मानकर मुझे अपना लो
प्रकोष्ठ का..........
बैठ गई हूँ तो स्वयं उठ भी नहीं सकती
यह मेरी बेबसी और लाचारी है
तुम स्वयं 'उसकी' तरह तत्परता से आकर
मुझे बांहों में भरकर उठा लो
भीतर ले जाकर मेरे सर पर हाथ रखो,सुकून दो
और इंगित करो-
कहीं किसी देहरी पर बैठने की ज़रूरत नहीं
तुम्हारा विश्राम स्थल यह रहा
मैं जानती हूँ, तुम यह करोगे
प्रकोष्ठ का द्वार खोलो !
6 comments:
mat likha karo itna achha ki hairana hone ke liye bhee dimag shesh na raho bahut achha likha hai bahut khoob
ANil
आपके निवेदन को पढ़ रामकृष्ण परमहंस की याद आ गयी ...
उत्कट समर्पण ,श्रद्धा की पराकाष्ठा .....
काश ! मेरे मानसपटल पर भी कभी ऐसे भावः उगे ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।बहुत बढिया!
दर्शन दो घनशयाम
नाथ मोरी
अँखियाँ प्यासी रे..
या
मोहे अपनी शरण में ले लो राम ले लो राम,
लोचन मन में जगह ना हो तो जुगल चरण में ले लो राम..
किसी भजन की तरह लगी मुझे आपकी कविता,
इश्वर की समीपता उनका स्नेह और उनकी कृपा की आस
और एक अपनेपन के साथ बच्चो की सी जिद,
की द्वार खोलो नहीं तो नहीं जाउंगी..
वाह.. अतिसुन्दर..!!
iishwar ke prati ashim shraddha aur vishwash darshati rachana, Bahut hi khubsurat.
very beautiful amma, bahut achchhi lagi :)
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