मेरी दुनिया...

Friday, November 2, 2007

माँ की आँखें...


तुम यहाँ जब भी आओ
आज या कल या बरसों बाद
पाओगे दरवाज़े पर बैठी दो प्रतीक्षित आँखें
खारे पानी में तिरती
दो बेचैन पुतलियाँ एक माँ की...
जिसका बेटा कह कर गया
"ठहरो माँ मैं अभी आया"
चाहे तुम जब भी आओ..
आज या कल या बरसों बाद....
कलरव में डूबी भोर हो...
या अंगारे उगलती दोपहर...
बरसती हुई शाम हो या ठिठुरती हुई रात...
ये प्रतीक्षारत आँखें
कभी हटती नहीं, थकती नहीं, झिपती नहीं...
ध्यानावस्थित बैठी रहती हैं...
निराश नहीं होती...
ये दो आँखें,माँ की हैं न...
जिसका बेटा कह कर गया...
"ठहरो माँ मैं अभी आया"
तुम यहाँ जब भी आओ
आज या कल या बरसों बाद
पाओगे किसी बेसहारा टूटे सितारे सी एक भटकती आत्मा...
घर के इर्द गिर्द,पास पड़ोस पिछवाडे..
रूंधे कंठ से घर लौट आने वाले को आवाज़ देती हुई
दरवाज़े पर बैठी दो प्रतीक्षित आँखें...
खारे पानी में तिरती दो बेचैन पुतलियाँ'
एक माँ की...
जिसका बेटा कह कर गया
"ठहरो माँ मैं अभी आया"
- सरस्वती प्रसाद
(प्रकाशित "नदी पुकारे सागर" में)