
सुबह से ही मन उचाट हो गया है......उसका बयान व्यर्थ है !मेरे मन में प्रश्न उठता है - क्या मैं मूर्ख हूँ या समय से पीछे ? खैर जो भी हूँ , अभी मन को समझाने के क्रम में हूँ और बस यूँ ही लिख रही हूँ । यह भी एक प्रयास है -
बदलते क्रम की धुरी में
गाँव शहराना होता गया
नगर महानगर की शक्ल लेने को
उतावले हो गए !
सोच बदल गई,विचार बदल गए
लोग-बाग ऐसे बदले-
कि पुरानी पहचान विस्मृति के धुंध में खो गई !
आधुनिकता की अंधी दौड़ में डूबा व्यक्ति-
कभी अपने अन्दर झाँकने की चेष्टा नहीं करता
यह सोच भी अन्दर से सर नहीं उठाती
कि, वह कितना बदल गया !
आत्मा के कल्पवृक्ष अदृश्य होते जा रहे हैं
अब तो वैसी आंधी भी नहीं आती,
जो भ्रम की चादर उड़ा दे....
इस गहमा-गहमी के यांत्रिक युग में
रिश्तों कि बातें सोचना या करना
प्रागैतिहासिक काल पर बातें करना जैसा हो गया
या फिर निरी मूर्खता !!!!!!!!!!
बदलते क्रम की धुरी में
गाँव शहराना होता गया
नगर महानगर की शक्ल लेने को
उतावले हो गए !
सोच बदल गई,विचार बदल गए
लोग-बाग ऐसे बदले-
कि पुरानी पहचान विस्मृति के धुंध में खो गई !
आधुनिकता की अंधी दौड़ में डूबा व्यक्ति-
कभी अपने अन्दर झाँकने की चेष्टा नहीं करता
यह सोच भी अन्दर से सर नहीं उठाती
कि, वह कितना बदल गया !
आत्मा के कल्पवृक्ष अदृश्य होते जा रहे हैं
अब तो वैसी आंधी भी नहीं आती,
जो भ्रम की चादर उड़ा दे....
इस गहमा-गहमी के यांत्रिक युग में
रिश्तों कि बातें सोचना या करना
प्रागैतिहासिक काल पर बातें करना जैसा हो गया
या फिर निरी मूर्खता !!!!!!!!!!