मेरी दुनिया...

Wednesday, September 10, 2008

निरी मूर्खता !!


सुबह से ही मन उचाट हो गया है......उसका बयान व्यर्थ है !मेरे मन में प्रश्न उठता है - क्या मैं मूर्ख हूँ या समय से पीछे ? खैर जो भी हूँ , अभी मन को समझाने के क्रम में हूँ और बस यूँ ही लिख रही हूँ । यह भी एक प्रयास है -

बदलते क्रम की धुरी में
गाँव शहराना होता गया
नगर महानगर की शक्ल लेने को
उतावले हो गए !
सोच बदल गई,विचार बदल गए
लोग-बाग ऐसे बदले-
कि पुरानी पहचान विस्मृति के धुंध में खो गई !
आधुनिकता की अंधी दौड़ में डूबा व्यक्ति-
कभी अपने अन्दर झाँकने की चेष्टा नहीं करता
यह सोच भी अन्दर से सर नहीं उठाती
कि, वह कितना बदल गया !
आत्मा के कल्पवृक्ष अदृश्य होते जा रहे हैं
अब तो वैसी आंधी भी नहीं आती,
जो भ्रम की चादर उड़ा दे....
इस गहमा-गहमी के यांत्रिक युग में
रिश्तों कि बातें सोचना या करना
प्रागैतिहासिक काल पर बातें करना जैसा हो गया
या फिर निरी मूर्खता !!!!!!!!!!