मेरी दुनिया...

Friday, March 28, 2008

दर्द का रिश्ता...

(संपादक "श्री अम्बुज शर्मा" के अनुरोध पर -
उन्होंने इस कविता को माँगा था, अपनी पत्रिका "नैन्सी " के लिए (हिन्दी दिवस विशेषांक) )



राष्ट्र कवि दिनकर ने लिखा हैं-
"प्रभु की जिसपर कृपा होती हैं
दर्द उसके दरवाज़े
दस्तक देता हैं....."

पंक्तियों के मर्म की जब परतें खुली,
अंतस के निविड़ अन्धकार मे,
किरणें कौंधी!
मैं अवाक्! निश्चेष्ट !
अप्रतिम छवि को
पलकों मे भरती रही....
भीतर से विगलीत आवाज़ आई -
"दाता तेरी करुणा का जवाब नही"
सहसा महसूस हुआ ,
दर्द का रिश्ता
हमारे अन्दर जीता हैं
दर्द की मार्मिक लय
आस-पास गूंजती हैं
दर्द का कड़वा धुआं ,
साँसों मे घुटन भरता हैं
ओह!
अनदेखा, गुमनाम होकर भी
अन्तर की गहराइयों मे बेबस बैठा
कोई फूट-फूट कर रोता हैं!
रिश्तों की डोर
मेरी आत्मा से बंधी हैं ,
अपना हो या और किसी का -
चाहे - अनचाहे मैं भंवर मे फँस जाती हूँ !
छाती की धुकधुकी बढ़ जाती हैं,
घबरा कर ,
अनदेखे , अनजाने को
बाँहों मे भर कर ,
सिसकियों मे डूब जाती हूँ !
लोग कहते हैं-
मुझे सोचने की बीमारी हैं,
मैं लोगों की बातों का उत्तर
नहीं दे पाती!
अचानक, ये मुझे क्या हो गया हैं,
शायद....
दर्द के इसी रिश्ते को लोग
"विश्व-बंधुत्व " की भावना कहते हैं,
तो देर किस बात की बंधु ?
दो कदम तुम चलो ,
दो कदम हम....
और इसी रिश्ते के नाम पर
पथ बंधु बन जाएँ !
जीवन की डगर को
सहयात्री बन काट लेंगे...
दर्द को हम बाँट लेंगे.....!