मेरी दुनिया...

Monday, August 4, 2008

डर कैसा ?


जी चाहता है -

रेशमी सपनों के पंख पैरों में बाँध लूँ

और उड़ जाऊँ

निस्सीम आकाश का विस्तार मापने

पर अगले ही क्षण डर लगता है !

आँधियों का क्या भरोसा ?

समय का एक हल्का इंगित होते ही

नभ का कोना - कोना

धूल - गर्द गुबार से ढँक जाएगा

मेरे सारे मनसूबे दिशाहीन हो जायेंगे !

पर तेरे चरण चिन्ह , मेरे हौसले को बल देते हैं

पूरे ब्रह्माण्ड में तू विद्यमान है

साथ-साथ चलता है , प्यार करता है

तो फिर , डर कैसा ?