मेरी दुनिया...

Friday, August 1, 2008

ज़माना बदल गया ..........



अब कोई नहीं कहता-
मैं वाणभट्ट होता तो 'कादम्बरी' लिखता
जयदेव होता तो 'गीत गोविन्द' लिखता
जायसी होता तो 'पद्मावत' लिखता....
काश ! कभी तू भूले से ही सही,
मेरे आँगन आ जाती
मैं हरसिंगार के फूल बनकर
तुम्हारा आँचल फूलों से भर देता !
कभी तुम कहती- तुम्हे कौन सा रंग पसंद है
मैं उसी रंग के फूलों का बाग़ लगा देता
उसके बीच खड़ी होकर तुम वनदेवी सी दिखती !
मैं क़यामत के दिन तक.............................................
जैसे शब्दों की गूंज ख़त्म हो गई
इसलिए लगता है, ज़माना बदल गया !

15 comments:

masoomshayer said...

कविता उस एक भाव और उस की अभिवकती के लिए आप की निष्ठा अद्वितीय है

अनिल मासूमशायर

Unknown said...

Adbhut rachna... Sachhai ki pratimoorti si lagti hai ye rachna!! Great work

gyaneshwaari singh said...

मैं क़यामत के दिन तक.............................................
जैसे शब्दों की गूंज ख़त्म हो गई
इसलिए लगता है, ज़माना बदल गया !


jamana badala hai aur jamane wale bhi...

shabdo ki gunj bhi badal gayee sabke sath..lelkin phir bhi kahin na kahin kuch log us gunj ko utnee hi tanmanyta ke sath sunate hai jaisa pahle tha kabhi.

bhaut anokhi rachna amma ki..

acha laga unko padne ka mauka laga mujhe.

डाॅ रामजी गिरि said...

"जैसे शब्दों की गूंज ख़त्म हो गई
इसलिए लगता है, ज़माना बदल गया !"

कभी कोयल की हूक से भी आग लग जाती थी सारी फिजा में , पर आजकल हर चीज cool है...

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... said...

हाँ सच कहा आपने की ज़माना बदल गया है..
अब हर चीज की एक कीमत है,
सब कुछ व्यावसायिक हो गया है..
जो कभी सेवा का काम माना जाता था आज उन क्षेत्रों में भी लोग सिर्फ पैसे के लिए ही जा रहे हैं
तो ऐसे में कविता कौन लिखेगा? मिलता ही क्या है लिखने के बदले?
तो अब ना वैसे वाणभट्ट मिलेंगे ना जयदेव और ना ही जायसी..
अब आज यही पूछ लीजिये आजकल के बच्चों से कि
हरसिंगार का फूल कैसा होता है तो उन्हें रंग तक नहीं पाता होगा..
जमाना बदलना बुरा नहीं है,
अपना वजूद, मर्यादा और संस्कृति खो देना बुरा है..
पैसा बहुत कुछ हो सकता है पर सब कुछ कभी नहीं..
इस फर्क को समझना होगा और अपनी ख़ुशी के साथ
कुछ औरो की ख़ुशी के लिए भी करना होगा..
वरना आज जिस तरह प्यार और रिश्तों की हालत हो गयी है,
ऐसा ना हो की हर किसी के पास बस तनाव ही रह जाये..



मैं क़यामत के दिन तक....
जैसे शब्दों की गूंज ख़त्म हो गई

हा, सच में ख़त्म हो गयी है..
दिल को छू गयी कविता तभी इतना कुछ लिख गया..
वाह..!!

Vandana Shrivastava said...

हाँ ज़माना तो बदल ही गया है अम्मा...!! बहुत अच्छी लिखी है... :)

श्रद्धा जैन said...

bhaut ghari baat
ab wo ehsaas nahi wo garmahat bhi nahi hai

Amaa ji aapki kavita bahut ghari hai

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah, kya baat hai.......

!!अक्षय-मन!! said...

sahi kaha jamana sach main badal gaya kitni sundarta se prastut kara hai aapne premi-premika ki dil lubhane wali in baton ko ab aisa hai nahi sab badal gaya..
agar aisa khetebhi ho to upri dikhwa ya koi pasand nahi karta.....

Manvinder said...

bahut sahi kaha hai aapne.....prem or prem ki baatain ab sirf kitaabo mai hi rah gae hai....
sab kuch badal gaya hai...
Manvinder

राज भाटिय़ा said...

वाह वाह वाह, क्या भाव हे सच मे जमाना बदल गया हे प्यार भी बिकने लगा हे,
बहुत धन्यवाद जी,
(अम्मा) क्या यह आप का नाम हे, या आप हम सब से उम्र मे बडी हे??
मुझे आप का नाम पुछने की चाह नही लेकिन... अम्मा मेरे ख्याल मे तमिल मे नाम भी होता हे

संत शर्मा said...

बहुत सही कहा आपने, वाकई समय बदल गया है, अर्थ के इस युग में में भावनाए अपना अस्थित्व खोती जा रही है, लोग प्रैक्टिकल हो गए है |

रंजू भाटिया said...

बहुत सही कहा आपने .ज़माना तो बदल गया है अब ..किताबों और किस्सों में ही रह गई है यह बातें
अच्छा लगा बहुत दिनों के बाद आपका लिखा पढ़ना

समयचक्र said...

khoobasoorat sachitr kavita abhivyakti. bahut sundar rachana .

Anonymous said...

bahut achchhi rachna hai..halaki maine jamana bahut nahi dekha phir bhi lagata hai jamana badal gaya hai..kuch badlaav achchha bhi hai,kuch bura bhi..par bure ka vajan bad gaya hai...meri kavita "har taraf band"par tippani ke liye dhanyavaad.