मेरी दुनिया...

Sunday, March 30, 2008

प्यार..............?


प्यार वह तिलस्मी संसार हैं

जो जुनून बनकर रगों में दौड़ता हैं,

जब तिलिस्म टूटता हैं-तो पता चलता हैं,

बहुत कुछ पीछे छूट गया!

जुनून में डूबी हर कहानी,

स्याह रास्तों से होकर गुजरती हैं,

किसी आनेवाले सुबह के इंतज़ार में

अंधेरों से जूझते हुए दम तोड़ती हैं!

तुम्हारे शब्दों में-प्यार एक पूजा हैं

अक्षत हैं,रोली हैं,चंदन हैं

पूजा की वेदी पर मन का समर्पण हैं!

लोग कहते हैं,

प्यार एक पाप हैं,

दर्द का सौदा हैं,

दुर्वासा का शाप हैं....

सही क्या हैं,ग़लत क्या हैं

कहीं नहीं लेखा हैं

धरती और आकाश का मिलन

किसी ने नहीं देखा हैं!

3 comments:

vinodbissa said...

प्यार..............?
अच्छी विवेचना की है आपने प्यार की॰॰॰॰॰॰॰ पक्ष और विपक्ष दोनो ही पहलुऒं को बड़ी सावधानी से उकेरा है॰॰॰॰ बहुत खूब ।।।।। शुभकामनायें॰॰॰॰॰॰॰॰

Dr Swati Pande Nalawade said...

Bahut sundar hai amma! Sach me pyar ka andekha roop kisi ne kahaan dekha hai...Jo jitna doobta hai, utna hi sukh pata hai...bas takleef tab hoti hai jab wo chaahta hai ki is pyaar me apne premi ko bhi sang lekar chale kintu wo...wo kahiin kho jata hai/gum ho jata hai/kisi mod pe ruk jata hai/zamaane se dar jata hai/.....dharti aur akaash ka milan kya sach me kisi ne dekha hai??

डाॅ रामजी गिरि said...

प्यार के पन्नों पर आपके सादर हस्ताक्षर सारथी जैसे लगे .......

प्यार शर्तों और अपेक्षाओं के जाल में उलझ कर तिलिस्म बन जाता है... पर 'मीरा' जैसी दीवानी युगों में एक बार आती है और प्यार पर हमारे भरोसे को एक नयी संजीवनी दे जाती है.