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बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ-
तकिये पर सिर टिका कर लेटी
तो पलकें गिराने का मन नहीं किया....
ये कोई नई बात नहीं थी,
बात नई यह थी-
आंखों में डाली दवा बही
बित्ते भर के फासले पर
तुम हो लेटी हुई
और मुझे दिखा एक रंग और कूची
रंग वही,जो अक्सर सभाल कर रख देती हूँ
मैं चुप, तुम्हे देखती रही-
आख़िर रहा नहीं गया,मैं बुदबुदाई -
तुम्हे रंग दूँ?
एकटक तुम मुझे देखती रही कुछेक क्षण
फिर धीरे से कहा-
क्या मैं तुम्हे बेरंग दिखती हूँ?
मैंने मन ही मन में कहा-नहीं, ऐसी तो बात नहीं,
बस , मन में आया
महज बित्ते भर के फासले से तुम बोली-'ज़रूरत नहीं'
और अगर है भी,
तो मुझमें रंग भरनेवाले बहुत हैं....
सकुचाती हुई मैं बोली,फुसफुसाती सी
मालूम है मुझे,बस मन किया
मेरे पास तो रंग भी बहुत नहीं
और कूची भी सिर्फ़ एक है
तुम जानती भी हो
वह रंग-'फीको पड़े न बरु फटे '
नाम क्या बताना?
रहीम को तो जानती ही हो
-"रहिमन धागा.....मत जोडो चटकाए
जोड़े से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए!"
तुम चुपचाप मुझे देखती रही-फिर बोली
'मुझे कुछ नहीं बोलना................'
बोलना था मुझे,
पर तुम पर निरर्थक परेशानी लाद दूँ
सोच कर चुप हो गई!
अचानक तुमने करवट ले ली-
मैंने अपनी छाती सहलाई!
ख़ुद से पूछा -'क्या मेरी छाती में दर्द हो रहा है?'
तकिये पर सिर टिका कर लेटी
तो पलकें गिराने का मन नहीं किया....
ये कोई नई बात नहीं थी,
बात नई यह थी-
आंखों में डाली दवा बही
बित्ते भर के फासले पर
तुम हो लेटी हुई
और मुझे दिखा एक रंग और कूची
रंग वही,जो अक्सर सभाल कर रख देती हूँ
मैं चुप, तुम्हे देखती रही-
आख़िर रहा नहीं गया,मैं बुदबुदाई -
तुम्हे रंग दूँ?
एकटक तुम मुझे देखती रही कुछेक क्षण
फिर धीरे से कहा-
क्या मैं तुम्हे बेरंग दिखती हूँ?
मैंने मन ही मन में कहा-नहीं, ऐसी तो बात नहीं,
बस , मन में आया
महज बित्ते भर के फासले से तुम बोली-'ज़रूरत नहीं'
और अगर है भी,
तो मुझमें रंग भरनेवाले बहुत हैं....
सकुचाती हुई मैं बोली,फुसफुसाती सी
मालूम है मुझे,बस मन किया
मेरे पास तो रंग भी बहुत नहीं
और कूची भी सिर्फ़ एक है
तुम जानती भी हो
वह रंग-'फीको पड़े न बरु फटे '
नाम क्या बताना?
रहीम को तो जानती ही हो
-"रहिमन धागा.....मत जोडो चटकाए
जोड़े से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए!"
तुम चुपचाप मुझे देखती रही-फिर बोली
'मुझे कुछ नहीं बोलना................'
बोलना था मुझे,
पर तुम पर निरर्थक परेशानी लाद दूँ
सोच कर चुप हो गई!
अचानक तुमने करवट ले ली-
मैंने अपनी छाती सहलाई!
ख़ुद से पूछा -'क्या मेरी छाती में दर्द हो रहा है?'
ख़ुद पर चिडचिडाते हुए बड़बडाई -
तो मरो तुम!
मूर्खाधिराज ! रंग पलट दो,कूची तोड़ दो
किसी पंख फटकारते पक्षी की ताकत लगाकर
तोड़ दो जिंदगी की तीलियाँ
और उड़ जाओ!
उठ कर मैंने रंग और कूची संभाल कर रख दी
कौन जाने कभी काम आए
और इसके सिवा अपने पास है भी क्या ?
अपनी बेबसी की लम्बी साँस लेकर
तकिये पर जब फिर लेटी
तो आंखों से पानी आने लगा
' रे मन मूरख जनम गंवायो'
तो मरो तुम!
मूर्खाधिराज ! रंग पलट दो,कूची तोड़ दो
किसी पंख फटकारते पक्षी की ताकत लगाकर
तोड़ दो जिंदगी की तीलियाँ
और उड़ जाओ!
उठ कर मैंने रंग और कूची संभाल कर रख दी
कौन जाने कभी काम आए
और इसके सिवा अपने पास है भी क्या ?
अपनी बेबसी की लम्बी साँस लेकर
तकिये पर जब फिर लेटी
तो आंखों से पानी आने लगा
' रे मन मूरख जनम गंवायो'
11 comments:
bhut sundar. ati uttam. jari rhe.
Shyad mai aapki likhi is kavita per comment karne ke yogya nahi abhi. Kavita Padhne me achchi lagi, lekin mai aapke manobhawo ko us had tak nahi samajh paya jitna ki mujhe samajhna chahiye.
WAH, BAHUT KHOOB.. LEKIN YE PADH KAR JANE DIL KYU BECHAIN HO GAYA..!!
GOD BLESS U AMMA JI..!!
Amma Charan Sparsh!
kalam kee pooja karoon to uski vandana main gar aapke kuch shabd bhee padh doon to pooja poori ho jaaye......adbhut kavita....sahme.....sakuchaye....ekkaki man ka chitran behad manoram gadh diya...
har tika-tippani se upar..behtareen kavita
...Aapka Ehsaas!
kabhee kabhee shabd bhee nahee milte ki tareef kaise kee jaye
gala rundh sa jata hai ankh nam ho jatee hai
bas apne pairon pe sar rakh lene do ye bhee adhooree prashansa hee hai par is se adhik mujhe kuch ata nahee hai
Anil
आदरणीया अम्मा जी आपकी रचना ''बहुत दिनों बाद.....'' अच्छी भावनापूर्ण है ,,,,,,,, ह्रदय को छूती है ..... शुभकामनाएं.....
uch jyada to khe nahi sakta parantu is rachna main mujhe jindagi ko apni yadon se rangne ki vyakulta nazar aai.....
"उठ कर मैंने रंग और कूची संभाल कर रख दी
कौन जाने कभी काम आए
और इसके सिवा अपने पास है भी क्या ?"
बहुत ही सटीक भावःप्रवीण लेखनी चली है मन और जीवन के संवादों को उकेरती हुई..
soch main padh gayi ki kitni der main seekhi ye gudh baat zindgi ki
jeeva ke bhaav ko ukerti hui bahut achhi kavita
sunder bhav
Bahot hi apni lagi ....
Pranam " अम्मा जी "
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