मेरी दुनिया...

Wednesday, July 16, 2008

मुक्ति??????


मेरे पास चिट्ठियों का अम्बार था,
आदतन,जिन्हें संभाल कर रखती थी
गाहे-बगाहे उलटते-पुलटते,
समय पाकर लगा-
अधिकाँश इसमें निरर्थक हैं-रद्दी कागजों की ढेर!
फिर.....मैंने उन्हें नदी में डलवा दिया !
मेरे पास कुछेक सालों की लिखी डायरियों का संग्रह था,
फुर्सत में-
पलटते हुए पाया,
उनके पृष्ठों पर आँसुओं के कतरे थे-
बाद में ये कतरे किसी को भिंगो सकते हैं,
ये सोच-मैंने मन को मजबूत किया,
फिर उन्हें भी नदी के हवाले कर दिया!
अब,....मेरे पास कुछ नहीं,
सिर्फ़ एक पोटली बची है-जिंदगी के लंबे सफर की!
यादें, जिसमें भोर की चहचहाती चिडियों का कलरव है!
यादें,जिसमें नदी के मोहक चाल की गुनगुनाहट है!
दिल जीतनेवाली अटपटी बातों की मधुर रागिनी है!
बोझिल क्षणों को छू मंतर करनेवाले कहकहों की गूंज है
जीत-हार और रूठने-मनाने का अनुपम खेल है!
खट्टी-मीठी बातों की फुलझडी है
दिन का मनोरम उजास है,
रात की जादुई निस्तब्धता है,
छोटी-छोटी खुशियों की फुहार में भीगने का उपक्रम है
और कभी न भुलाए जानेवाले दर्द का आख्यान भी है!
ख्याल आता है,
पोटली को बहा देती तो मुक्ति मिल जाती!........
पर अगले ही क्षण हँसी आती है
- मुक्ति शब्द -प्रश्न-चिन्ह बनकर खड़ा हो जाता है,
जिसका जवाब नहीं!!!
तो, जतन से सहेज रखा है -
यादों की इस पोटली को
जिस दिन विदा लूंगी -
यह भी साथ चली जायेगी!

11 comments:

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के said...

पोटली को बहा देती तो मुक्ति मिल जाती!........
पर अगले ही क्षण हँसी आती है
- मुक्ति शब्द -प्रश्न-चिन्ह बनकर खड़ा हो जाता है,

Bahut hi sahaj bhaav se paripoorn !

Deepak Gogia.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

amma ki likhi kavita ke liye mere comments.......ye kutchh janchta nahi hai........iska vice versa hona chahiye sirf..yani agar main kutchh bhi likhun to aap jarur comments post karo.......

waise bhi aap bargad ka per ho to main pudine ka........hai na!!

majak kar raha tha.......

charan sparsh!!
mukesh

!!अक्षय-मन!! said...

आँख भर आई आपके दिल को पढ़कर
शब्द लड़खडाए आपके मर्म को देखकर
मन मंदिर बना आपको पूजकर
यादें अमृत बनी आपको सुनकर ......अम्मा का बच्चा अक्षय
इस बेबसी को देख रोक न पाया खुद को दो मोती टपक ही गए .....

Keerti Vaidya said...

ITS SO TOUCHY ....DIL SEY LIKHEY BHAV DIL KO CHU GAYE..

डाॅ रामजी गिरि said...

नदी उद्गम से जब चलती है,हर पिछले अवशिष्ट को दो कदम बाद ही तलछटी में छोड़ देती है... जब सागर में मिलती है तब भी सारा कुछ मुहाने पर ही छोड़ जाती है... पोटली भी कहाँ साथ जाती है ,सरस्वती जी !!!!

Anonymous said...

बहुत ही मार्मिक पंग्तिया है

really HRT TOUCHING hai ............

anu said...

aaisa laga kessei nei apne astitv per prashan chinha laga diya
mei koi shayara nahi na hei ilam hai mujhee is ka
per jindgi sei wasta hai mera
bahut khoobsurat shabdo mei keh diya apne woh jo lehlahata hai sab kei jahan mei
mukti ya tadap yahi hai bas do lafj

संत शर्मा said...

ये खट्टी-मीठी यादे ही तो होती है, जो अंतिम क्षण तक साथ निभाती है | जितेजी इनसे मुक्ति संभव भी नहीं और यदि संभव हो भी जाये तो जीवन नीरस हो जाये | बहुत खुबसूरत कविता, भावनाओ का हिर्दय्स्पर्शी चित्रण |

Udan Tashtari said...

बहुत मार्मिक!!

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... said...

अति सुन्दर कविता, पर हृदयस्पर्शी भी,
इतना भावुक कि लगता है आपने दिल खोल कर रख दिया..

जगजीत सिंह जी कि वो ग़ज़ल याद आ गयी--

तेरे खुशबु में बसे खत मै जलाता कैसे?
प्यार में डूबे हुए ख़त मै जलाता कैसे?
तेरे हाथों के लिखे ख़त मै जलाता कैसे?
तेरे ख़त आज,
मै गंगा में बहा आया हू,
आग बहते हुए पानी में,
लगा आया हूँ.....!!



दिल भर जाता है पढ़ कर..

श्रद्धा जैन said...

khushbu man main bas ji jaati hai amaa ji yahi to doulat hai hum jaise logon ki kuch yaaden
aajkal dua yahi karti hoon ki zindgi ki aakhri saans tak bus yaaddaasht achhi rahe
aapne bhaut sahaj bhaav main bhaut gudh baat kahe di hai