मेरी दुनिया...

Friday, July 25, 2008

दाता !


हलकी नींद के आगोश से रात १२.१५ में उठकर लिखने पर विवश सी हो गई.......


शायद मैंने हाथ बढाये थे-

दर्द का दान देकर तुमने मुझे विदा कर दिया !

यह दर्द, निर्धूम दीपशिखा के लौ की तरह

तुम्हारे मन्दिर में अहर्निश जलता है।

कौन जाने, कल की सुबह मिले ना मिले

अक्सर तुमसे कुछ कहने की तीव्रता होती है

पर.......... सोचते ही सोचते,

वृंत से टूटे सुमन की तरह

तुम्हारे चरणों में अर्पित हो जाती हूँ !

7 comments:

GOPAL K.. MAI SHAYAR TO NAHI... said...

ACHHI FEELINGS HAIN..
NICE

pallavi trivedi said...

sumdar likha hai...badhai.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

तुम्हारे चरणों में अर्पित हो जाती हूँ !........yahi to jindagi hai amma........jahan se aayen hain, wahi ek din arpit ho jana hai....

bahut khubsurat panktiyan hain!!

mukesh

!!अक्षय-मन!! said...

कितनी पवित्र श्रद्धा है इश्वर के प्रति, दर्द को भी साधना का रूप दिया और इस साधना-रुपी दीये से ही उसकि प्रार्थना करना, जो है जो तुमसे मिला वोही सब तुम्हे अर्पित करना चाहें वो ख़ुशी हो या हो दुःख सब तुम्हारे चरणों में सब तुम्हारा ही है ............

संत शर्मा said...

ईश्वर में विश्वास उस मशाल की तरह होनी चाहिए जो आंधियो में और तेजी से जले और अनवरत जलती ही रहे |सुख दुःख तो जीवन का अभिन्न अंग है, आता जाता रहता है, लेकिन ईश्वर के प्रति समर्पण हर हाल में बना रहना चाहिए | बहुत सही लिखा आपने |

डाॅ रामजी गिरि said...

वृंत से टूटे सुमन की तरह


तुम्हारे चरणों में अर्पित हो जाती हूँ !"

बहुत ही मार्मिक और निश्छल समर्पण है आपका...

masoomshayer said...

is kavia ke abad do boond ansu ankh me ruk gaye
usee diye kee low thee ye kya jo aap ne jalaya tha

aisee kavita padh ke dil kahata hai apnee adhee sans aap ne nam kar doon amma adhee is liye ki bakee adhi tumhe padhne ke liye chahiyen jeene ka moh ho jata hai

Anil