
आपने भी देखा होगा -
मक्खन की डली -सी उस लड़की को
जो बादलों के बीच दौड़ती है
खरगोशों के झुंड से खिलवाड़ करती है
स्याह मखमली भालुओं के बीच विचरण करती है
लुकाछिपी का खेल खेलती है
फिर अचानक पलक झपकते ही -
शिखर पर पहुँच जाती है
और कभी आंखों से कभी हाथ से
इशारा करती है -
'आकाश के आँगन में आओ
हमारी दुनिया को जानो
हमारे साथ खेलो -
निःशंक, निर्द्वंद !'
इस निश्छल अनुरोध को मानकर
हमें भी उसे निमंत्रण भेजना चाहिए
'तुम धरती पर आकर हमारी दुनिया देखो और जानो '
शायद इस मेल-जोल से
धरती - आकाश का काल्पनिक मिलन
साकार हो जाए
आनेवाले कल को कोई नया सृजन हो !
पर क्या हम इस बात का दावा कर सकते हैं
की बादलों वाली मासूम लड़की
- इंसानी रंगत वाली धरती पर
उसी प्रकार दौडेगी,खेलेगी
जैसे आकाश के आँगन में होती है
- निःशंक, निर्द्वंद !?
8 comments:
ji DHARTI aur Akash ka milan ... agar ho jaaye to subhan allah..
bahut sunder pantiyan hai..
mataji ki haardik dhanywaad.
वाह, बहुत अच्छी कविता है और बहुत सही सवाल उठाया है आपने..!!
उसी प्रकार दौडेगी,खेलेगी
जैसे आकाश के आँगन में होती है
- निःशंक, निर्द्वंद !?
kya baat hai.
lajwab, ati uttam..
likhti rahen....
amma.jaroorat to isi milan ki hai.par hamne dharti ko maila kar diya hai. baadlovali ladki nihsank nahi khelegi....badhai.sochne ke liye vivas kar diya aapne.
bahut bahut khoobsoorat kalpana har rachana pranam yogy hai
ANil
बहुत ही खूबसूरत सम्भावना पर लेखनी चलायी है आपने...
पर क्या हम इस बात का दावा कर सकते हैं
की बादलों वाली मासूम लड़की
- इंसानी रंगत वाली धरती पर
उसी प्रकार दौडेगी,खेलेगी
जैसे आकाश के आँगन में होती है
- निःशंक, निर्द्वंद !?
Kavita ke madhyam se bahut hi prasangik prashn uthaya hai aapne, Bahut khubsurat.
कितना खूबसूरत! वाह !
सादर
शार्दुला
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