(१)
डूबते चाँद का पता पूछो
एक मुसाफिर यहीं पे सोया है
नभ की खिड़की से सर टिका करके
जाने कौन सारी रात रोया है!
(2 )
तेरा ख्याल मेरे साथ लगकर सोया है
थपकियाँ देकर कहानी सुनाई है
लोरी गाकर चादर उढ़ाया है
पलकों और गालों को आँचल से पोंछा है
होठों पर संजीवनी रख दी है
शायद थोडी देर पहले यह रोया है
तेरा ख्याल साथ लगकर सोया है.....
(३)
जा रहा किस ओर तू
कुछ बोल पंछी
किस पिपासा को लिए ओ बावरा
दर्द जब इंसान हर पता नहीं
क्या हरेंगे फिर ये चंचल धवल बादल?
(४)
आओ आज की रात
हम दरवाजों को खुला छोड़ दें
खिड़कियों को बंद मत करें
हमारी अधीरता वह भांप ले
और लौट आए.............
Wednesday, August 20, 2008
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12 comments:
bahut pahle college me ye panktiyan likhi thi maine kisi apne ke virah me " na pooch ki tujhe kaise bhulaya hai,teri yadon ko thapkiyan de-2 ke sulaya hai" . aadrniya amma ji ki kavita padh ke wahi udgar, wahi bhavnayen yaad aa gayin. sach hi to kaha hai na pant ji ne....virahi hoga pahla kavi....dard bolta hai tabhi kavita janam leti hai, jisne dard na saha ho wo kavi nahi ho sakta......
आओ आज की रात
हम दरवाजों को खुला छोड़ दें
खिड़कियों को बंद मत करें
हमारी अधीरता वह भांप ले
और लौट आए.............
Bahut khubsurat.
nabh ki khiki se sir tika ke, jane kaun sari raat roya hai........
bahut bahut suner.....
........anita
aapki ye sabhi rachnayen vilakshan hain.
nabh ki khidaki ka sundar prayog hai.
lori ko chaadar ka rupak anutha hai.
panchhi ki pyaas baadal bhi bujhane men asaksham hain.
adheerta batane ki adheerta achchhi lagi.
saadar
तेरा ख्याल मेरे साथ लगकर सोया है
थपकियाँ देकर कहानी सुनाई है
लोरी गाकर चादर उढ़ाया है
पलकों और गालों को आँचल से पोंछा है
होठों पर संजीवनी रख दी है
शायद थोडी देर पहले यह रोया है
तेरा ख्याल साथ लगकर सोया है...
सब बहुत अच्छी लगी .पर यह बहुत दिल के करीब है ..बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा लिखती रहे
वाह अम्मा जी बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने..
अच्छा लगा पढ़कर..!!
चांद की गुफ़्तगु सारी कायनात से है,
ओस की बूंदों के दर्द मे मैं भी भटका हूं...
आओ आज की रात
हम दरवाजों को खुला छोड़ दें
खिड़कियों को बंद मत करें
हमारी अधीरता वह भांप ले
और लौट आए.............
sach kahoon ....hatprbh hoon aapkee lekhanee bahut bol rahee hai "AMMAA"....
ITANE SUNDAR BHAAV ....NAMAN
होठों पर संजीवनी रख दी..
kitni sundar baat likhi hai.. manbhaavan..
आओ आज की रात
हम दरवाजों को खुला छोड़ दें
खिड़कियों को बंद मत करें
हमारी अधीरता वह भांप ले
और लौट आए.............
advitiy
Anil
bahut acha likha hai..lekin har line mein kisi ka intzaar sa laga
जा रहा किस ओर तू
कुछ बोल पंछी
किस पिपासा को लिए ओ बावरा
दर्द जब इंसान हर पता नहीं
क्या हरेंगे फिर ये चंचल धवल बादल?
bahut khub ...
man khush ho gaya.
aaj se ye mera fev. blog ho gaya.
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